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Keh do | कह दो

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  कह दो हो सकता है मुकर जाएं या सब कुछ सुधर जाए ये भी हो सकता है कि सब उम्मीदें बिखर जाएं फिर भी कह दो मत लेना दर्द कभी अफसोस का भले इनकार का मौसम ठहर जाए नामंजूरी का गम नहीं है अपार क्षणभंगुर, दो पल में उतर जाए इसलिए कह दो हो सकता है उसे कोई और कह जाए तुमसे पहले, दरिया किसी और का बह जाए और बेबात की कुछ देरी के लिए वो अपना मन किसी और को दे जाए इसलिए कह दो क्या पता मन में वो भी तुमसे चाहते है कहना, न जाने कबसे बस बचे हो तुम ही अंजान और कह चुके हैं वो सब से इसलिए तुम ही कह दो न कह पाओ तो कोई नज़्म उसे सुना दो अपने दिल को किसी खत में बना दो न रहेंगे हम, तुम और न वो कल फिर रहेगी सिर्फ मोहब्बत, इसे शब्दों में पनाह दो बस कह दो -----------------------------------------------------Ram Shrivastava--------------------------------------------------------------------

Random Shayari's | आकस्मिक शायरियां (Notes dump)

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  1. तुम्हे किसी ग़ज़ल में उतारूं, इतनी आसां नही हो तुम तुम्हे किसी पन्ने पर उकेरूं, इतनी आसां नही हो तुम और हो गया है मेरा तुम्हारा नाता भी कुछ ऐसा बस पूछने पर बता दो, इतनी आसां नही हो तुम 2. नासंजीदगी का शोक मनाऊं, या दिल्लगी का जश्न कमबख्त उसने आज मुझसे मजाक किया है 3. मेरी हर शायरी, हर कविता में तुम्हारा ज़िक्र होगा पाओगी खुद को मेरी गजलों में तभी, गर तुम्हारी तरफ से भी थोड़ा इश्क होगा और मत ढूंढना इन अल्फाजों में बिन मोहोब्बत तुम खुद को बिन मोहोब्बत ये नज़्म दस्ताने - कत्ल, जिसका अंजान कोई क़ातिल होगा 4. खामोशी चाहता है सूरज, हरारत चाहता है दरिया दोनों बेचारे कंगाली के शिकार हैं मुझे मिल न सका, जो तू फेंककर चला गया हम दोनो बेबसी के शिकार हैं ~ Ram Shrivastava Instagram page

Nasha | नशा

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  Nasha | नशा इन बादलों में नशा है कोई राज़ इनमें बसा है जैसे उन बरसते मोतियों से, कह रहे कुछ बात हैं जैसे दामिनी के प्रेम में, पागल हुई बरसात है जैसे सावन की घटा में, रिमझिम हुए जज़्बात हैं भीगना उस याद में दिल्लगी की सजा है इन बादलों में नशा है इन कागजों में नशा है कोई गीत इनमें बसा है जैसे किसी किताब में रचा, गौरवपूर्ण इतिहास जैसे किसी खत में लिखी, जीने मरने की आस जैसे किसी लिहाफ में बसी, एक प्रेमी की सांस, उस गीत के प्यार में जीना ही मजा है इन कागजों में नशा है इस यामिनी में नशा है कोई आरोप इसमें बसा है जैसे कथाओं में सुनी कैकेयी की ममता जैसे आज के काल में नारी की क्षमता जैसे अयोध्या लौटकर अग्निपरीक्षा देती सीता विश्वास ही तो जग के अस्तित्व की वजह है इस यामिनी में नशा है मुकद्दस नशा करता था तिरा 'मुसाफिर', ज़माने ने सौदाई समझकर बदनाम कर दिया By Ram Shrivastava | राम श्रीवास्तव

मां भारती का लाल हूं | Maa bharti ka laal hoon

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  मां शारदा का हूं वचन, कालिका का काल हूं द्रौपदी का तेज मैं मां गार्गी का सवाल हूं मीरा की भक्ति मैं मनु की तलवार हूं सीता सा पवित्र मैं, वसुंधरा का लाल हूं, शकुंतला का सुत भरत मैं भारती का लाल हूं मां भारती का लाल हूं शिव की हुंकार मैं विष्णु सा विशाल हूं राम की श्रेष्ठता का मैं विजय गुलाल हूं कृष्ण का हूं बालपन ब्रम्ह का विचार हूं गणपति की हूं मति नरसिंह बेमिसाल हूं श्रीराम का प्रिय भरत मैं भारती का लाल हूं मां भारती का लाल हूं प्रताप का प्रताप मैं कर्ण सा दयाल हूं शिवा का स्वराज मैं जमदग्नि का उबाल हूं चाणक्य की खुली शिखा भीम का प्रहार हूं दुर्गावती का शौर्य मैं रज़िया सी मिसाल हूं ऋषभदेवसुत योगी भरत मैं भारती का लाल हूं मां भारती का लाल हूं तीन रंग पहचान है संस्कृति निहाल हूं सर्वपंथ एकता की बहुत बड़ी मिसाल हूं पिता की कठोरता मां का कोमल प्यार हूं आगामी विश्वगुरु उज्ज्वल भविष्यकाल हूं यज्ञप्रिय जन गण भरत मैं भारती का लाल हूं मां भारती का लाल हूं ~ Ram Shrivastava

Dead but Alive..... Markar bhi Shaadaab

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मरकर भी शादाब  | Dead but Alive नींद तो कंबख्त आती ही नहीं, वो तो वक्त का दिल रखने को वक्त पे, सो जाया करते हैं। बिना उसके कोई सूरत भाती ही नहीं, वो तो हुस्न का दिल रखने को हुस्न में, खो जाया करते हैं। पहले सी मदहोशी अब छाती नहीं, ये सूरत भी अब मुस्कुराती नहीं, कोई तीखी बात अब दिल दुखाती नहीं, चांद की चांदनी अब चिढ़ाती नहीं, शामें भी अब राग गाती नहीं, चाहें भी पर अब जान जाती नहीं, जिस्म पे कोई चोट अकुलाती नहीं, वो तो दर्द का दिल रखने को दर्द में, रो जाया करते हैं। उसकी यादें तो कमबख्त जाती ही नहीं, वो तो जश्न का दिल रखने को जश्न में, हो जाया करते हैं।

Pause ...... Hindi Kavita

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 Pause | पॉज़  जिस पल मैं अपने सफर में रुका, कुछ पैर में मेरे इक कंकड़ सा चुभा, रुका तो देखा, चारो ओर नजर घुमाई, कोई और नही दिखा, बस मैं और मेरी तनहाई, वो चांद भी रुक गया, जो पीछा कर रहा था, मुझे एहसास ही नही था, मैं अकेला चल रहा था, जो पेड़ हवा से झूम रहे थे,थक गए थे, जो तारे मुझे राह बता रहे थे, वो भी रुक गए थे, तब उस कंकड़ ने मुझे पुकारा, अपने पास बुलाया, पहली बार किसी ने मुझे अपने आप से मिलाया, आंख मिलाकर उसने कहा, रुक ही गए हो तो सुनो, रुकना है या चलना है तुम खुद चुनो, रुकने पर तो ये पेड़, चांद तारे भी तुम्हे हासिल नहीं, जिसकी खोज में ये सफर है, कहीं तुम खुद ही तो इसकी मंजिल नहीं, हां, शायद वो कंकड़ नहीं मेरा वजूद ही था, चलने पर तो था ही, मेरे रुकने के बावजूद भी था। ~ राम श्रीवास्तव

Surmayi Shaam Ke Saaye Mein....Hindi Poetry

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 सुरमई शाम के साए में.... सुरमई शाम के साये में, लोक - नदी में डुबकी लेने, जीने का उन्माद लिए, दूर किनारे बैठा मैं। सुरमई शाम के साए में, बिन कमली मंजिल तक जाने, ऊंचे ऊंचे खाब लिए, लोक - शीत में बैठा मैं। ~ Ram Shrivastava