Dead but Alive..... Markar bhi Shaadaab
मरकर भी शादाब | Dead but Alive
नींद तो कंबख्त आती ही नहीं,
वो तो वक्त का दिल रखने को वक्त पे,
सो जाया करते हैं।
बिना उसके कोई सूरत भाती ही नहीं,
वो तो हुस्न का दिल रखने को हुस्न में,
खो जाया करते हैं।
वो तो वक्त का दिल रखने को वक्त पे,
सो जाया करते हैं।
बिना उसके कोई सूरत भाती ही नहीं,
वो तो हुस्न का दिल रखने को हुस्न में,
खो जाया करते हैं।
पहले सी मदहोशी अब छाती नहीं,
ये सूरत भी अब मुस्कुराती नहीं,
कोई तीखी बात अब दिल दुखाती नहीं,
चांद की चांदनी अब चिढ़ाती नहीं,
शामें भी अब राग गाती नहीं,
चाहें भी पर अब जान जाती नहीं,
जिस्म पे कोई चोट अकुलाती नहीं,
वो तो दर्द का दिल रखने को दर्द में,
रो जाया करते हैं।
उसकी यादें तो कमबख्त जाती ही नहीं,
वो तो जश्न का दिल रखने को जश्न में,
हो जाया करते हैं।
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