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Nasha | नशा

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  Nasha | नशा इन बादलों में नशा है कोई राज़ इनमें बसा है जैसे उन बरसते मोतियों से, कह रहे कुछ बात हैं जैसे दामिनी के प्रेम में, पागल हुई बरसात है जैसे सावन की घटा में, रिमझिम हुए जज़्बात हैं भीगना उस याद में दिल्लगी की सजा है इन बादलों में नशा है इन कागजों में नशा है कोई गीत इनमें बसा है जैसे किसी किताब में रचा, गौरवपूर्ण इतिहास जैसे किसी खत में लिखी, जीने मरने की आस जैसे किसी लिहाफ में बसी, एक प्रेमी की सांस, उस गीत के प्यार में जीना ही मजा है इन कागजों में नशा है इस यामिनी में नशा है कोई आरोप इसमें बसा है जैसे कथाओं में सुनी कैकेयी की ममता जैसे आज के काल में नारी की क्षमता जैसे अयोध्या लौटकर अग्निपरीक्षा देती सीता विश्वास ही तो जग के अस्तित्व की वजह है इस यामिनी में नशा है मुकद्दस नशा करता था तिरा 'मुसाफिर', ज़माने ने सौदाई समझकर बदनाम कर दिया By Ram Shrivastava | राम श्रीवास्तव

Pause ...... Hindi Kavita

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 Pause | पॉज़  जिस पल मैं अपने सफर में रुका, कुछ पैर में मेरे इक कंकड़ सा चुभा, रुका तो देखा, चारो ओर नजर घुमाई, कोई और नही दिखा, बस मैं और मेरी तनहाई, वो चांद भी रुक गया, जो पीछा कर रहा था, मुझे एहसास ही नही था, मैं अकेला चल रहा था, जो पेड़ हवा से झूम रहे थे,थक गए थे, जो तारे मुझे राह बता रहे थे, वो भी रुक गए थे, तब उस कंकड़ ने मुझे पुकारा, अपने पास बुलाया, पहली बार किसी ने मुझे अपने आप से मिलाया, आंख मिलाकर उसने कहा, रुक ही गए हो तो सुनो, रुकना है या चलना है तुम खुद चुनो, रुकने पर तो ये पेड़, चांद तारे भी तुम्हे हासिल नहीं, जिसकी खोज में ये सफर है, कहीं तुम खुद ही तो इसकी मंजिल नहीं, हां, शायद वो कंकड़ नहीं मेरा वजूद ही था, चलने पर तो था ही, मेरे रुकने के बावजूद भी था। ~ राम श्रीवास्तव