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एक और हार | Ek aur haar

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 एक और हार जीवन रूपी समर से आज फिर लौटा हूं हारकर वापस रख लाया अपने शस्त्र संभालकर धार उनकी कुछ पैनी न जान पड़ती है चोट उनकी कुछ गहरी न जान पड़ती है बेताब होकर समर पथ पर बिन बुलाए मैं चला बिन कमर कसकर युद्ध लड़ने अज्ञात निर्बल मैं चला रास्ते में खाट डाले है बवंडर था खड़ा बीच में से ही मुझको घर भागने था खड़ा मैं नासमझ नादान डटकर बेतहाशा भिड़ गया तूफान को आंधी समझकर बिन विचारे भिड़ गया पिट पिटाकर बच बचाकर जैसे तैसे मैं बचा फड़फड़ाकर छटपटाकर कैसे कैसे मैं बचा जान पे आती समझकर, पैर उल्टे लौट आया फिर निराशा डर कमाकर, पैर उल्टे लौट आया छत पर खड़ा बेआस बेबस, इस भयानक रात में दामिनी, श्यामल घटा, सुनसान गहरी रात में अचानक, सरसराती शीतमय एहसास लेकर वो चली फिर सहर की आस लेकर, महमहाती वो चली उसके पावन स्पर्श से शादहाली छा गई संघर्ष की शक्ति मिली, फिर से आशा छा गई फिर सुबह उठकर दीप जलाना होगा फिर समर में डटकर धनुष चलाना होगा ना थका जब हारकर हर बार भी 'मुसाफिर', हार ने भी हारकर रस्ता बदल लिया By Ram Shrivastava

Nasha | नशा

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  Nasha | नशा इन बादलों में नशा है कोई राज़ इनमें बसा है जैसे उन बरसते मोतियों से, कह रहे कुछ बात हैं जैसे दामिनी के प्रेम में, पागल हुई बरसात है जैसे सावन की घटा में, रिमझिम हुए जज़्बात हैं भीगना उस याद में दिल्लगी की सजा है इन बादलों में नशा है इन कागजों में नशा है कोई गीत इनमें बसा है जैसे किसी किताब में रचा, गौरवपूर्ण इतिहास जैसे किसी खत में लिखी, जीने मरने की आस जैसे किसी लिहाफ में बसी, एक प्रेमी की सांस, उस गीत के प्यार में जीना ही मजा है इन कागजों में नशा है इस यामिनी में नशा है कोई आरोप इसमें बसा है जैसे कथाओं में सुनी कैकेयी की ममता जैसे आज के काल में नारी की क्षमता जैसे अयोध्या लौटकर अग्निपरीक्षा देती सीता विश्वास ही तो जग के अस्तित्व की वजह है इस यामिनी में नशा है मुकद्दस नशा करता था तिरा 'मुसाफिर', ज़माने ने सौदाई समझकर बदनाम कर दिया By Ram Shrivastava | राम श्रीवास्तव

मां भारती का लाल हूं | Maa bharti ka laal hoon

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  मां शारदा का हूं वचन, कालिका का काल हूं द्रौपदी का तेज मैं मां गार्गी का सवाल हूं मीरा की भक्ति मैं मनु की तलवार हूं सीता सा पवित्र मैं, वसुंधरा का लाल हूं, शकुंतला का सुत भरत मैं भारती का लाल हूं मां भारती का लाल हूं शिव की हुंकार मैं विष्णु सा विशाल हूं राम की श्रेष्ठता का मैं विजय गुलाल हूं कृष्ण का हूं बालपन ब्रम्ह का विचार हूं गणपति की हूं मति नरसिंह बेमिसाल हूं श्रीराम का प्रिय भरत मैं भारती का लाल हूं मां भारती का लाल हूं प्रताप का प्रताप मैं कर्ण सा दयाल हूं शिवा का स्वराज मैं जमदग्नि का उबाल हूं चाणक्य की खुली शिखा भीम का प्रहार हूं दुर्गावती का शौर्य मैं रज़िया सी मिसाल हूं ऋषभदेवसुत योगी भरत मैं भारती का लाल हूं मां भारती का लाल हूं तीन रंग पहचान है संस्कृति निहाल हूं सर्वपंथ एकता की बहुत बड़ी मिसाल हूं पिता की कठोरता मां का कोमल प्यार हूं आगामी विश्वगुरु उज्ज्वल भविष्यकाल हूं यज्ञप्रिय जन गण भरत मैं भारती का लाल हूं मां भारती का लाल हूं ~ Ram Shrivastava

Life isn't over yet....!

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  Life is strange sometimes, isn't it? Whether the things are complimentary or not? Have you ever thought about it? What is Happiness and Sadness? What is failure or success? What is win or lose? Aren't you thought if you're sad then someone is happy, if you failed in something, obviously some other one will succeed, if you lose , someone will win. Maybe when you Succeed , someone would failed and likewise. Lets assume of you want to win something but at same time, you doesn't want let the person who is competing with you will loose. Then what will you do and what should you do? And who'll decide that whether the thing you've done is right or wrong. Answer is you. If your act give you satisfaction from inside, that means you've done right, if not then you consider it wrong. So whole key is the point of view. It can also question your existence. Like that story of man and butterfly. Once a man dreamt that he became butterfly in his dream , after he wake up , ...

Dead but Alive..... Markar bhi Shaadaab

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मरकर भी शादाब  | Dead but Alive नींद तो कंबख्त आती ही नहीं, वो तो वक्त का दिल रखने को वक्त पे, सो जाया करते हैं। बिना उसके कोई सूरत भाती ही नहीं, वो तो हुस्न का दिल रखने को हुस्न में, खो जाया करते हैं। पहले सी मदहोशी अब छाती नहीं, ये सूरत भी अब मुस्कुराती नहीं, कोई तीखी बात अब दिल दुखाती नहीं, चांद की चांदनी अब चिढ़ाती नहीं, शामें भी अब राग गाती नहीं, चाहें भी पर अब जान जाती नहीं, जिस्म पे कोई चोट अकुलाती नहीं, वो तो दर्द का दिल रखने को दर्द में, रो जाया करते हैं। उसकी यादें तो कमबख्त जाती ही नहीं, वो तो जश्न का दिल रखने को जश्न में, हो जाया करते हैं।

Pause ...... Hindi Kavita

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 Pause | पॉज़  जिस पल मैं अपने सफर में रुका, कुछ पैर में मेरे इक कंकड़ सा चुभा, रुका तो देखा, चारो ओर नजर घुमाई, कोई और नही दिखा, बस मैं और मेरी तनहाई, वो चांद भी रुक गया, जो पीछा कर रहा था, मुझे एहसास ही नही था, मैं अकेला चल रहा था, जो पेड़ हवा से झूम रहे थे,थक गए थे, जो तारे मुझे राह बता रहे थे, वो भी रुक गए थे, तब उस कंकड़ ने मुझे पुकारा, अपने पास बुलाया, पहली बार किसी ने मुझे अपने आप से मिलाया, आंख मिलाकर उसने कहा, रुक ही गए हो तो सुनो, रुकना है या चलना है तुम खुद चुनो, रुकने पर तो ये पेड़, चांद तारे भी तुम्हे हासिल नहीं, जिसकी खोज में ये सफर है, कहीं तुम खुद ही तो इसकी मंजिल नहीं, हां, शायद वो कंकड़ नहीं मेरा वजूद ही था, चलने पर तो था ही, मेरे रुकने के बावजूद भी था। ~ राम श्रीवास्तव

Surmayi Shaam Ke Saaye Mein....Hindi Poetry

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 सुरमई शाम के साए में.... सुरमई शाम के साये में, लोक - नदी में डुबकी लेने, जीने का उन्माद लिए, दूर किनारे बैठा मैं। सुरमई शाम के साए में, बिन कमली मंजिल तक जाने, ऊंचे ऊंचे खाब लिए, लोक - शीत में बैठा मैं। ~ Ram Shrivastava