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India's Intercontinental Cup Triumph: Analyzing the Victory over Lebanon and the Road Ahead

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India emerged victorious in the Intercontinental Cup, displaying their prowess against a spirited young Lebanon side. The match, held at the Kalinga Stadium, witnessed a thrilling second-half performance from the Indian team that led to a 2-0 win. This blog post provides an in-depth analysis of the game, highlighting key moments and India's triumph in breaking a longstanding jinx against Lebanon. India's Struggle in the Opening Session: Despite dominating possession in the first half, India faced a resilient Lebanon defense that thwarted their goal-scoring opportunities. The host team struggled to convert their chances, leaving the opening session goalless and raising concerns about their finishing abilities. Chhetri's Brilliant Strike Changes the Game: The tide turned in India's favor shortly after the halftime break. In the opening minute of the second half, Sunil Chhetri skillfully capitalized on a well-coordinated play between Nikhil Poojary and Chhangte, securing

The Art of Letting Go

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 The Art of Letting Go "you may think your only choice is either swallow your anger or throw it on someone's face, but there is third option, you can just let it go, and only when you do that it is really gone and you move forward, And that is a perfect ending of a perfect story, it's just isn't yours, yours is still waiting outside there, for you" (From How I met your mother) We know Holi is festival of colors, but it also signifies many things. One of them is art of letting go and new beginning. We all are humans and I know it's never easy for us to let go some things or people, but for the new beginning, very first step is letting go. Sometimes you have mixed bag of feelings, that you want to pour outside on someone, and sometimes we do. But sometimes situation doesn't allow us to do so, then there is another option to just let go. I know it's hard, even I couldn't do it easily. But at least we have to try, and try everyday. Try for the person y

Keh do | कह दो

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  कह दो हो सकता है मुकर जाएं या सब कुछ सुधर जाए ये भी हो सकता है कि सब उम्मीदें बिखर जाएं फिर भी कह दो मत लेना दर्द कभी अफसोस का भले इनकार का मौसम ठहर जाए नामंजूरी का गम नहीं है अपार क्षणभंगुर, दो पल में उतर जाए इसलिए कह दो हो सकता है उसे कोई और कह जाए तुमसे पहले, दरिया किसी और का बह जाए और बेबात की कुछ देरी के लिए वो अपना मन किसी और को दे जाए इसलिए कह दो क्या पता मन में वो भी तुमसे चाहते है कहना, न जाने कबसे बस बचे हो तुम ही अंजान और कह चुके हैं वो सब से इसलिए तुम ही कह दो न कह पाओ तो कोई नज़्म उसे सुना दो अपने दिल को किसी खत में बना दो न रहेंगे हम, तुम और न वो कल फिर रहेगी सिर्फ मोहब्बत, इसे शब्दों में पनाह दो बस कह दो -----------------------------------------------------Ram Shrivastava--------------------------------------------------------------------

Random Shayari's | आकस्मिक शायरियां (Notes dump)

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  1. तुम्हे किसी ग़ज़ल में उतारूं, इतनी आसां नही हो तुम तुम्हे किसी पन्ने पर उकेरूं, इतनी आसां नही हो तुम और हो गया है मेरा तुम्हारा नाता भी कुछ ऐसा बस पूछने पर बता दो, इतनी आसां नही हो तुम 2. नासंजीदगी का शोक मनाऊं, या दिल्लगी का जश्न कमबख्त उसने आज मुझसे मजाक किया है 3. मेरी हर शायरी, हर कविता में तुम्हारा ज़िक्र होगा पाओगी खुद को मेरी गजलों में तभी, गर तुम्हारी तरफ से भी थोड़ा इश्क होगा और मत ढूंढना इन अल्फाजों में बिन मोहोब्बत तुम खुद को बिन मोहोब्बत ये नज़्म दस्ताने - कत्ल, जिसका अंजान कोई क़ातिल होगा 4. खामोशी चाहता है सूरज, हरारत चाहता है दरिया दोनों बेचारे कंगाली के शिकार हैं मुझे मिल न सका, जो तू फेंककर चला गया हम दोनो बेबसी के शिकार हैं ~ Ram Shrivastava Instagram page

Musafir ki Mohobbatein | मुसाफिर की मोहब्बतें

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Musafir ki Mohobbatein | मुसाफिर की मोहब्बतें By - Ram Shrivastava 1. नूर -ए- महताब  तुम्हारे क़सीदे सुन सुनकर दुनिया तंग आ गई है हमसे, हमने तो अभी ठीक से बताया ही नहीं वो तुम्हारी थोड़ी सुनहरी थोड़ी काली बिखरी जुल्फ़ें, हमने तो अभी ठीक से जताया ही नहीं चेहरे पर एक अज़ीब उलझन और वो मासूम सी हसी, तुमने अभी तो ठीक से मुस्कुराया ही नहीं अभी तो दरिया -ए -इश्को -ख़ाब में ही डूबे हैं तुम्हारे, जुदाई का ज्वार तो आया भी नहीं कौन कहता है कि मेरे पास नहीं हो तुम, मकां -ए -रूह तो हमने दिखाया ही नहीं नन्हा चिराग नहीं नूर -ए -महताब है वो, ए दुनिया, जद -ए -नूर तो 'मुसाफिर' ने बताया ही नहीं 2. अनजान तालिब  अश्कों के सागर चढ़-चढ़ के उतर गए जहाने-इश्क़ में, इस इश्क़ की बनक न हुई, कल दो तालिब अंजान, राह से गुज़र गए ज़ालिम वक्त की ऐसी कभी सनक न हुई जब हम हुए थे उल्फत-ए-यार में शैदा उनको हमारी चाह की भनक न हुई, जब वो हुए थे इश्क-ए-मुसन्निफ़ में गिरवीदा, तो 'मुसाफिर' को सला-ए-यार की खनक न हुई 3. दास्ताँ -ए- बयाँ -ए- इश्क़   शब -ए- आरज़ू में तन्हा, महताब के मुंतज़िर थे बयारे-इश्क़ ने 'मुस

एक और हार | Ek aur haar

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 एक और हार जीवन रूपी समर से आज फिर लौटा हूं हारकर वापस रख लाया अपने शस्त्र संभालकर धार उनकी कुछ पैनी न जान पड़ती है चोट उनकी कुछ गहरी न जान पड़ती है बेताब होकर समर पथ पर बिन बुलाए मैं चला बिन कमर कसकर युद्ध लड़ने अज्ञात निर्बल मैं चला रास्ते में खाट डाले है बवंडर था खड़ा बीच में से ही मुझको घर भागने था खड़ा मैं नासमझ नादान डटकर बेतहाशा भिड़ गया तूफान को आंधी समझकर बिन विचारे भिड़ गया पिट पिटाकर बच बचाकर जैसे तैसे मैं बचा फड़फड़ाकर छटपटाकर कैसे कैसे मैं बचा जान पे आती समझकर, पैर उल्टे लौट आया फिर निराशा डर कमाकर, पैर उल्टे लौट आया छत पर खड़ा बेआस बेबस, इस भयानक रात में दामिनी, श्यामल घटा, सुनसान गहरी रात में अचानक, सरसराती शीतमय एहसास लेकर वो चली फिर सहर की आस लेकर, महमहाती वो चली उसके पावन स्पर्श से शादहाली छा गई संघर्ष की शक्ति मिली, फिर से आशा छा गई फिर सुबह उठकर दीप जलाना होगा फिर समर में डटकर धनुष चलाना होगा ना थका जब हारकर हर बार भी 'मुसाफिर', हार ने भी हारकर रस्ता बदल लिया By Ram Shrivastava

Nasha | नशा

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  Nasha | नशा इन बादलों में नशा है कोई राज़ इनमें बसा है जैसे उन बरसते मोतियों से, कह रहे कुछ बात हैं जैसे दामिनी के प्रेम में, पागल हुई बरसात है जैसे सावन की घटा में, रिमझिम हुए जज़्बात हैं भीगना उस याद में दिल्लगी की सजा है इन बादलों में नशा है इन कागजों में नशा है कोई गीत इनमें बसा है जैसे किसी किताब में रचा, गौरवपूर्ण इतिहास जैसे किसी खत में लिखी, जीने मरने की आस जैसे किसी लिहाफ में बसी, एक प्रेमी की सांस, उस गीत के प्यार में जीना ही मजा है इन कागजों में नशा है इस यामिनी में नशा है कोई आरोप इसमें बसा है जैसे कथाओं में सुनी कैकेयी की ममता जैसे आज के काल में नारी की क्षमता जैसे अयोध्या लौटकर अग्निपरीक्षा देती सीता विश्वास ही तो जग के अस्तित्व की वजह है इस यामिनी में नशा है मुकद्दस नशा करता था तिरा 'मुसाफिर', ज़माने ने सौदाई समझकर बदनाम कर दिया By Ram Shrivastava | राम श्रीवास्तव