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Showing posts from August, 2022

एक और हार | Ek aur haar

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 एक और हार जीवन रूपी समर से आज फिर लौटा हूं हारकर वापस रख लाया अपने शस्त्र संभालकर धार उनकी कुछ पैनी न जान पड़ती है चोट उनकी कुछ गहरी न जान पड़ती है बेताब होकर समर पथ पर बिन बुलाए मैं चला बिन कमर कसकर युद्ध लड़ने अज्ञात निर्बल मैं चला रास्ते में खाट डाले है बवंडर था खड़ा बीच में से ही मुझको घर भागने था खड़ा मैं नासमझ नादान डटकर बेतहाशा भिड़ गया तूफान को आंधी समझकर बिन विचारे भिड़ गया पिट पिटाकर बच बचाकर जैसे तैसे मैं बचा फड़फड़ाकर छटपटाकर कैसे कैसे मैं बचा जान पे आती समझकर, पैर उल्टे लौट आया फिर निराशा डर कमाकर, पैर उल्टे लौट आया छत पर खड़ा बेआस बेबस, इस भयानक रात में दामिनी, श्यामल घटा, सुनसान गहरी रात में अचानक, सरसराती शीतमय एहसास लेकर वो चली फिर सहर की आस लेकर, महमहाती वो चली उसके पावन स्पर्श से शादहाली छा गई संघर्ष की शक्ति मिली, फिर से आशा छा गई फिर सुबह उठकर दीप जलाना होगा फिर समर में डटकर धनुष चलाना होगा ना थका जब हारकर हर बार भी 'मुसाफिर', हार ने भी हारकर रस्ता बदल लिया By Ram Shrivastava

Nasha | नशा

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  Nasha | नशा इन बादलों में नशा है कोई राज़ इनमें बसा है जैसे उन बरसते मोतियों से, कह रहे कुछ बात हैं जैसे दामिनी के प्रेम में, पागल हुई बरसात है जैसे सावन की घटा में, रिमझिम हुए जज़्बात हैं भीगना उस याद में दिल्लगी की सजा है इन बादलों में नशा है इन कागजों में नशा है कोई गीत इनमें बसा है जैसे किसी किताब में रचा, गौरवपूर्ण इतिहास जैसे किसी खत में लिखी, जीने मरने की आस जैसे किसी लिहाफ में बसी, एक प्रेमी की सांस, उस गीत के प्यार में जीना ही मजा है इन कागजों में नशा है इस यामिनी में नशा है कोई आरोप इसमें बसा है जैसे कथाओं में सुनी कैकेयी की ममता जैसे आज के काल में नारी की क्षमता जैसे अयोध्या लौटकर अग्निपरीक्षा देती सीता विश्वास ही तो जग के अस्तित्व की वजह है इस यामिनी में नशा है मुकद्दस नशा करता था तिरा 'मुसाफिर', ज़माने ने सौदाई समझकर बदनाम कर दिया By Ram Shrivastava | राम श्रीवास्तव

मां भारती का लाल हूं | Maa bharti ka laal hoon

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  मां शारदा का हूं वचन, कालिका का काल हूं द्रौपदी का तेज मैं मां गार्गी का सवाल हूं मीरा की भक्ति मैं मनु की तलवार हूं सीता सा पवित्र मैं, वसुंधरा का लाल हूं, शकुंतला का सुत भरत मैं भारती का लाल हूं मां भारती का लाल हूं शिव की हुंकार मैं विष्णु सा विशाल हूं राम की श्रेष्ठता का मैं विजय गुलाल हूं कृष्ण का हूं बालपन ब्रम्ह का विचार हूं गणपति की हूं मति नरसिंह बेमिसाल हूं श्रीराम का प्रिय भरत मैं भारती का लाल हूं मां भारती का लाल हूं प्रताप का प्रताप मैं कर्ण सा दयाल हूं शिवा का स्वराज मैं जमदग्नि का उबाल हूं चाणक्य की खुली शिखा भीम का प्रहार हूं दुर्गावती का शौर्य मैं रज़िया सी मिसाल हूं ऋषभदेवसुत योगी भरत मैं भारती का लाल हूं मां भारती का लाल हूं तीन रंग पहचान है संस्कृति निहाल हूं सर्वपंथ एकता की बहुत बड़ी मिसाल हूं पिता की कठोरता मां का कोमल प्यार हूं आगामी विश्वगुरु उज्ज्वल भविष्यकाल हूं यज्ञप्रिय जन गण भरत मैं भारती का लाल हूं मां भारती का लाल हूं ~ Ram Shrivastava