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Musafir ki Mohobbatein | मुसाफिर की मोहब्बतें

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Musafir ki Mohobbatein | मुसाफिर की मोहब्बतें By - Ram Shrivastava 1. नूर -ए- महताब  तुम्हारे क़सीदे सुन सुनकर दुनिया तंग आ गई है हमसे, हमने तो अभी ठीक से बताया ही नहीं वो तुम्हारी थोड़ी सुनहरी थोड़ी काली बिखरी जुल्फ़ें, हमने तो अभी ठीक से जताया ही नहीं चेहरे पर एक अज़ीब उलझन और वो मासूम सी हसी, तुमने अभी तो ठीक से मुस्कुराया ही नहीं अभी तो दरिया -ए -इश्को -ख़ाब में ही डूबे हैं तुम्हारे, जुदाई का ज्वार तो आया भी नहीं कौन कहता है कि मेरे पास नहीं हो तुम, मकां -ए -रूह तो हमने दिखाया ही नहीं नन्हा चिराग नहीं नूर -ए -महताब है वो, ए दुनिया, जद -ए -नूर तो 'मुसाफिर' ने बताया ही नहीं 2. अनजान तालिब  अश्कों के सागर चढ़-चढ़ के उतर गए जहाने-इश्क़ में, इस इश्क़ की बनक न हुई, कल दो तालिब अंजान, राह से गुज़र गए ज़ालिम वक्त की ऐसी कभी सनक न हुई जब हम हुए थे उल्फत-ए-यार में शैदा उनको हमारी चाह की भनक न हुई, जब वो हुए थे इश्क-ए-मुसन्निफ़ में गिरवीदा, तो 'मुसाफिर' को सला-ए-यार की खनक न हुई 3. दास्ताँ -ए- बयाँ -ए- इश्क़   शब -ए- आरज़ू में तन्हा, महताब के मुंतज़िर थे बयारे-इश्क़ ने 'मुस